लग्न से
सिर का
द्वितीय
भाव से मुख और गले का
तृतीय
भाव से वक्षःस्थल व फेफड़े का
चतुर्थ
भाव से हृदय और छाती का
पंचम भाव
से कुक्षि और पीठ का
षष्ठ भाव
से कमर और आंतों का
सप्तम
भाव से नाभि से लिंग तक( योनि तक)
अष्टम
भाव से लिंग(योनि) और गुदा
नवम भाव
से ऊरु और जाँघ का
दशम भाव
से घुटनों का
एकादश
भाव से पिंडलियों का
द्वादश
भाव से पैर का
उपरोक्त
भाव से उपरोक्त शरीर के अंगों का विचार भाव में स्थित राशि और ग्रह की से किया
जाता है।
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