सावन का
पूरा महीना यूं तो भगवान शिव को अर्पित होता ही है पर सावन के पहले सोमवार को
भगवान शिव की पूजा करने से विशेष फल मिलता है. भारत के सभी द्वादश शिवलिंगों पर इस
दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. आदिकाल से ही इस दिन का विशेष महत्व रहा है.
कहा जाता है सावन के सोमवार का व्रत करने से मनचाहा जीवनसाथी मिलता है और दूध की
धार के साथ भगवान शिव से जो मांगो वह वर मिल जाता है.
सावन के
सोमवार की महिमा अपार है और इसीलिए हम आपके लिए सोमवार के व्रत की कथा और उसके
पूजन की विधि को लेकर आएं हैं.
पिछले
कुछ ब्लॉगों में हमने आपको कई अहम चालिसाओं, आरतियों और अन्य धार्मिक चीजों से रूबरू करवाया और अब हमारा प्रयास
है कि हम उन सभी लोगों की मदद करें जो व्रत रखते हैं.
आइए
जानें सावन के सोमवार के व्रत की कथा
एक कथा
के अनुसार जब सनत कुमारों ने महादेव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा
तो महादेव भगवान शिव ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में
योगशक्ति से शरीर त्याग किया था,
उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का
प्रण किया था. अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी
मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया. पार्वती ने सावन के महीने में
निराहार रह कर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए
यह विशेष हो गया. यही कारण है कि सावन के महीने में सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए
कुंवारी लड़कियों व्रत रखती हैं.
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सोमवार
व्रत विधि
सोमवार
व्रत में भगवान भगवान शंकर के साथ माता पार्वती और श्री गणेश की भी पूजा की जाती
है. व्रती यथाशक्ति पंचोपचार या षोडशोपचार विधि-विधान और पूजन सामग्री से पूजा कर
सकता है. व्रत स्त्री-पुरुष दोनों कर सकते हैं. शास्त्रों के मुताबिक सोमवार व्रत
की अवधि सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक है. सोमवार व्रत में उपवास रखना श्रेष्ठ
माना जाता है, किंतु
उपवास न करने की स्थिति में व्रती के लिए सूर्यास्त के बाद शिव पूजा के बाद एक बार
भोजन करने का विधान है. सोमवार व्रत एक भुक्त और रात्रि भोजन के कारण नक्तव्रत भी
कहलाता है.
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सावन के
पहले सोमवार की पूजा विधि
प्रात:
और सांयकाल स्नान के बाद शिव के साथ माता पार्वती, गणेश जी, कार्तिकेय और नंदी जी पूजा करें. चतुर्थी तिथि होने से श्री गणेश की
भी विशेष पूजा करें. पूजा में मुख पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर रखें. पूजा के
दौरान शिव के पंचाक्षरी मंत्र “ॐ नम:
शिवाय” और गणेश
मंत्र जैसे “ॐ गं
गणपतये” बोलकर भी
पूजा सामग्री अर्पित कर सकते हैं.
पूजा में
शिव परिवार को पंचामृत यानी दूध,
दही, शहद, शक्कर, घी व जलधारा से स्नान कराकर, गंध, चंदन, फूल, रोली, वस्त्र अर्पित करें. शिव को
सफेद फूल, बिल्वपत्र, सफेद वस्त्र और श्री गणेश
को सिंदूर, दूर्वा, गुड़ व पीले वस्त्र चढ़ाएं.
भांग-धतूरा भी शिव पूजा में चढ़ाएं. शिव को सफेद रंगे के पकवानों और गणेश को मोदक
यानी लड्डूओं का भोग लगाएं.
भगवान
शिव व गणेश के जिन स्त्रोतों, मंत्र और
स्तुति की जानकारी हो, उसका पाठ
करें. श्री गणेश व शिव की आरती सुगंधित धूप, घी के पांच बत्तियों के दीप और कर्पूर से करें. अंत में गणेश और शिव
से घर-परिवार की सुख-समृद्धि की कामनाएं करें.
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शंकर जी
की आरती
जय शिव
ओंकारा
जय शिव
ओंकारा, ॐ जय शिव
ओंकारा ।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥
ॐ जय शिव
ओंकारा
एकानन
चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसासन
गरूड़ासन वृषवाहन साजे ॥
ॐ जय शिव
ओंकारा
दो भुज
चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे ।
त्रिगुण
रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे ॥
ॐ जय शिव
ओंकारा
अक्षमाला
वनमाला मुण्डमाला धारी ।
त्रिपुरारी
कंसारी कर माला धारी ॥
ॐ जय शिव
ओंकारा
श्वेतांबर
पीतांबर बाघंबर अंगे ।
सनकादिक
गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
ॐ जय शिव
ओंकारा
कर के
मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूलधारी ।
सुखकारी
दुखहारी जगपालन कारी ॥
ॐ जय शिव
ओंकारा
ब्रह्मा
विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर
में शोभित ये तीनों एका ॥
ॐ जय शिव
ओंकारा
लक्ष्मी
व सावित्री पार्वती संगा ।
पार्वती
अर्द्धांगी, शिवलहरी
गंगा ॥
ॐ जय शिव
ओंकारा
पर्वत
सोहैं पार्वती, शंकर
कैलासा ।
भांग
धतूर का भोजन, भस्मी
में वासा ॥
ॐ जय शिव
ओंकारा
जटा में
गंग बहत है, गल
मुण्डन माला ।
शेष नाग
लिपटावत, ओढ़त
मृगछाला ॥
ॐ जय शिव
ओंकारा
काशी में
विराजे विश्वनाथ, नंदी
ब्रह्मचारी ।
नित उठ
दर्शन पावत, महिमा
अति भारी ॥
ॐ जय शिव
ओंकारा
त्रिगुणस्वामी
जी की आरति जो कोइ नर गावे ।
कहत
शिवानंद स्वामी सुख संपति पावे ॥
ॐ जय शिव
ओंकारा.
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